वन माफिया के आगे नतमस्तक तंत्र? जब्त वाहन छुड़ाने की तैयारी में जुटा माफिया!
वन माफिया के आगे नतमस्तक तंत्र? जब्त वाहन छुड़ाने की तैयारी में जुटा माफिया-सूत्र
बुदनी
बुदनी – बुदनी वन परिक्षेत्र में हाल ही में जब्त की गई सागौन से भरी पिकअप वाहन और उसके साथ पकड़े गए दो आरोपियों की कार्रवाई ने एक बार फिर वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, यह वाहन क्षेत्र में सक्रिय एक कुख्यात वन माफिया से जुड़ा है, और अब इसे छुड़ाने की कवायद में विभाग के ही कुछ अधिकारी लगे हुए हैं-सूत्र
यह कार्रवाई मुख्यबीर की सटीक सूचना पर उपवन मंडल अधिकारी सुक्रति ओसवाल के निर्देशन में रेंजर प्रकाश चंद्र उइके के नेतृत्व में की गई थी। वाहन में 27 नग सागौन की सिल्लियां भरी थीं, जिसे तुरंत जब्त कर लिया गया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि रेंजर को यह जानकारी नहीं थी कि पकड़ा गया वाहन उनके एक 'घनिष्ठ' माफिया से जुड़ा हुआ है।
जानकारी के मुताबिक, इस प्रकरण का मास्टरमाइंड भैरूदां क्षेत्र का एक कुख्यात वन माफिया है, जिसने हाल ही में नर्मदापुरम में पकड़े गए कुछ लोगों के बाद सोटिया गांव के गोडाऊन के पास एक खेत में भारी मात्रा में सागौन की सिल्लियां जला दी थीं। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने उस पर कोई कार्रवाई करना उचित नहीं समझा।
स्थानीय लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि इस वन माफिया पर कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती? सूत्रों की मानें तो रेंजर और माफिया के बीच मजबूत संबंध हैं, जिसके चलते विभाग की कार्रवाई पहले माफिया तक पहुंच जाती है। इससे स्पष्ट है कि निष्पक्ष जांच की संभावना लगभग नगण्य है।आखिर रेंजर प्रकाश चंद्र उइक और भैरूदां के नामी वन माफिया कि काल डिटेल्स सीडीआर कि जांच क्यू नही कराई जा रही बरिष्ठ अधिकारी क्यू इस और ध्यान नही दे रहे है या फिर देना ही नही चाहते है। क्या जांच मे रेजंर के कारनामो का खुलासे से पूरा विभाग डर रहा। जनता कि मांग है यादि बार बार इस तरह के आरोप लग रहे है तो जांच होना चाहिए।
वन माफिया का दावा है कि सीहोर जिले में उसके अवैध धंधों पर कोई हाथ नहीं डाल सकता, क्योंकि "नीचे से ऊपर तक" पूरा तंत्र उसके इशारों पर काम करता है। यदि यह बात सही है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि "सैंया भए कोतवाल, तो डर काहे का।"
अब देखना यह है कि क्या विभाग इस बार इस माफिया पर कोई ठोस कार्रवाई करता है या फिर एक बार फिर सियासत और सेटिंग के आगे कानून घुटने टेक देता है।